मोक्ष प्राप्ति हो हमारा लक्ष्य – आचार्य महाश्रमण
आचार्य महाश्रमण ने कहा– इस संसार में जीव सदा से है। उसके अस्तित्व का कोई प्रारम्भ बिंदू नहीं होता। हमारी यह आत्मा सदा से है – यह आत्मवाद की मान्यता है। न जीव की संख्या में कोई कमी होती है व न ही वृद्धि। इस लोक में जितने जीव थे उतने ही रहेंगे।

गुरुदेव ने प्रदान की कर्म मुक्त बनने की प्रेरणा
घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र) घोड़बंदर रोड स्थित नंदनवन का सुरम्य परिसर, युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का चातुर्मास स्थल और यहां से निरंतर प्रवाहित होने वाली ज्ञान गंगा। वर्तमान में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण के प्रवचनों की ज्ञान गंगा से ना केवल मुंबई वासी लाभ उठा रहे है अपितु ऑनलाइन माध्यमों द्वारा भी हजारों श्रद्धालु नंदनवन से प्रसारित होने इस आगम वाणी से प्रतिदिन लाभान्वित हो रहे है। शहर से बाहरी और स्थित होने के बाद भी होटल सी एन रॉक का यह नंदनवन परिसर आचार्य श्री की पावन उपस्थिति से जनसमुदाय को जंगल में मंगल की अनुभूति करा रहा है।
ज प्रातः मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में देशना देते हुए आचार्य महाश्रमण ने कहा– इस संसार में जीव सदा से है। उसके अस्तित्व का कोई प्रारम्भ बिंदू नहीं होता। हमारी यह आत्मा सदा से है – यह आत्मवाद की मान्यता है। न जीव की संख्या में कोई कमी होती है व न ही वृद्धि। इस लोक में जितने जीव थे उतने ही रहेंगे। मनुष्य साधना के द्वारा, सिद्धत्व की साधना द्वारा सिद्ध बनते है। जीव भाव व सिद्धों के भाव में समानता नहीं होती, उनकी स्थिति एक दूसरे के विपरीत होती है। संसारी हो या सिद्ध सबकी आत्मा अरूपी व अमूर्त ही होती है। सिद्ध कर्मों से पूर्णतः मुक्त हो जाते हैं, उनके किसी प्रकार का कर्म शेष नहीं रहता तभी वह मोक्ष को प्राप्त करते है।
आचार्य श्री ने आगे बताया कि संसारी आत्माएं कर्मो का अंत नहीं कर पाती इस लिए संसार में भ्रमण करती रहती है। खाली होना भार मुक्ति है। जीव से सिद्धत्व की यात्रा बहुत लम्बी यात्रा है। यह साधना का मार्ग है और इस मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ भी आ सकती है, उन कठिनाइयों को पार करने से ही मोक्ष का लक्ष्य पूरा हो सकता है। यह प्रथम से अप्रथम की यात्रा है। हमारा भी लक्ष्य रहे की इस यात्रा में यात्रायित होकर हम मोक्ष का वरण करें व अप्रथम से प्रथम बने। तत्पश्चात साध्वीवर्या संबुद्धयशा ने समय की महता पर प्रकाश डालते हुए उद्बोधन प्रदान किया।
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