सियासी चालः चंदन का बलिदान तो नहीं !
राजनीति में कब किसे बचाने के लिए किस की बलि दे दे कहा नहीं जा सकता है, भाजपा की दूसरी सूची के आने के चार दिन बाद भी यह सियासी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है, विधायक चन्द्रभान सिंह का टिकट काटकर पूर्व मंत्री नरपत सिंह राजवी को टिकट देने का भाजपा का निर्णय भले ही किसी भी परिस्थिति में हुआ हो लेकिन यह बात तो साफ है कि नरपत सिंह को राजनीति में बनाए रखने के लिए यहां पर पार्टी ने विधायक चन्द्रभान सिंह के राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगा दिया!

- चित्तौडगढ चित्तौडगढ के इतिहास में एक प्रसंग बहुत ही प्रचलित है उदय सिंह को बचाने के लिए पन्नाधाय अपने ही पुत्र चंदन को बलिदान की भेंट चढा दी थी, इतिहास के गर्त में जो कुछ हुआ हो लेकिन चित्तौडगढ में शुरू हुआ सियासी चाल भी इससे कोई अलग नहीं दिख रहा है, यहां पर राजनीति में कब किसे बचाने के लिए किस की बलि दे दे कहा नहीं जा सकता है, भाजपा की दूसरी सूची के आने के चार दिन बाद भी यह सियासी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है, विधायक चन्द्रभान सिंह का टिकट काटकर पूर्व मंत्री नरपत सिंह राजवी को टिकट देने का भाजपा का निर्णय भले ही किसी भी परिस्थिति में हुआ हो लेकिन यह बात तो साफ है कि नरपत सिंह को राजनीति में बनाए रखने के लिए यहां पर पार्टी ने विधायक चन्द्रभान सिंह के राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगा दिया! इस निर्णय ने भाजपा के लिए चित्तौडगढ में चुनाव मैदान में संकट की स्थिति खडी कर दी है, ऐसे में कांग्रेस की बांछे भी खिल गई है! दो दिन पूर्व शहर के गुलशन गार्डन में विधायक चन्द्रभान के समर्थकों की भीड और उसके बाद मंगलवार को चन्द्रभान सिंह की ओर से आयोजित युवा सम्मेलन में संगठन एवं पार्टी के कई पुराने सिपेहसालार भी शामिल हुए जो विधायक चन्द्रभान को पार्टी से बागावत के लिए मजबूत करते हुए दिखे, इस सब के बीच फिर भी विधायक चन्द्रभान का अब तक निर्दलीय चुनाव लडने की घोषणा नहीं करना इस बात को भी इंगित करता है कि वे अभी भी पार्टी से उम्मीद लगाए बैठे है, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सी पी जोशी के गृह क्षेत्र चित्तौडगढ में ही उनका विरोध करवाना, फिर उन पर चन्द्रभान का पुरानी अदावत का आरोप लगाना इस बात को तो साफ करता है कि दोनों के बीच मनमुटाव की स्थिति है हालाकि इसको लेकर प्रदेशाध्यक्ष सी पी जोशी का अब तक कोई बयान नहीं आना इस बात को भी दर्शाता है कि वे पार्टी के निर्णय से कितने सहमत है, फिलहाल कहा नहीं जा सकता लेकिन वह भी पार्टी के अनुशासन में बंधे हुए है, इस सब के बीच एक बात तो यह भी है कि दो दिग्गज नेताओं की लडाई में पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता कि स्थिति वह हो गई कि दो पाटन के बीच में साबूत बचा ना कोए ! जो पार्टी को सच्चा सिपाही है वह अब तक यह तय नहीं कर पा रहा है कि आखिर जाए तो किसके साथ! वह पेशोंपेश में कि ना तो पार्टी चन्द्रभान को टिकट देने की घोषणा कर रह है और ना ही चन्द्रभान पार्टी से बगावत के स्वर मुखर कर रहे है, ऐसे में पार्टी के कार्यकर्ता इस बात की भी उम्मीद में है कि आने वाले दिनों में दोनों ही पक्षों के बीच कोई सुलाह का रास्ता निकल आए लेकिन यहां पर यह कहना भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि दोनों ही अपनी-अपनी मूंछ का सवाल बना लिया है, ऐसे में अब जिसकी भी नाव किनारे पर लगेगी उसका तारण हार तो भाजपा का कर्मठ कार्यकर्ता ही होगा! ऐसे में पार्टी एवं संगठन को भी कार्यकर्ताओं की भावना को ध्यान में रखते हुए सभी विवादों को ताक में रखकर कोई सर्वमान्य हल निकालने का प्रयास करना चाहिए, इसी में पार्टी एवं कार्यकर्ता की जीत होगी !
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