सैकड़ों प्रलोभनों के बावजूद अकबर की अधीनता के प्रत्येक प्रस्ताव को ठुकरा दिया
Despite hundreds of temptations, he rejected every offer of submission from Akbar

चित्तौड़गढ़: दैवीय भागवत कथा महोत्सव में कथा के चौथे दिन प्रातः सुरजपोल स्थित सांईदास एवं डोडिया सांडा, भगवान चारभुजानाथ, मुख्य कथा स्थल बिरला धर्मशाला में हवन-यज्ञ से शुभारम्भ हुआ। जौहर स्मृति संस्थान चितौड़गढ़ के पुर्व संयुक्त मंत्री कान सिंह सुवावा ने सुरजपोल दरवाजे पर सांई दास चुंडावत व डोडियां सांडा की पूजा अर्चना करते हुए बताया कि इसी सूरज पोल मार्ग पर उत्तर की ओर बढ़ने पर दाहिनी और पूर्व अभिमुख प्रवेश द्वार सूरजपोल आता है पहले दुर्ग पर आने-जाने का रास्ता पूर्वाभिमुख था। पश्चिम की तरफ के दरवाजों का निर्माण तो महाराणा कुंभा ने करवाया था। इसी सूरजपोल दरवाजे पर सत्यव्रत रावत चुंडा का वंशधर रावत सांई दास चुंडावत सन 1568 ईस्वी में चित्तौड़ के तीसरे साके में इसी सूरजपोल नामक स्थान पर मुगल सेना नायक आसफ खां से संघर्ष करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । यह उसी वीरवर का स्मारक है जो युगों पूर्व हुए बलिदानी जौहर की याद दिलाता है। इसी सूरजपोल दरवाजे पर डोडिया सांडा एक दबंग, साहसी, स्वामी भक्त व स्वाभिमानी सरदार था जिसने सैकड़ों प्रलोभनों के बावजूद अकबर की अधीनता के प्रत्येक प्रस्ताव को सहर्ष ठुकरा दिया। इन्हीं गुणों के कारण उस महापुरुष की गिनती मेवाड़ के स्वर्णाक्षरों में की जाती है। यों अवश्यंभावी मृत्यु से साक्षात्कार होने की संभावना को देखते हुए भी कोई प्रलोभन उस वीरवर को अपनी मातृभूमि से गद्दारी करने से तैयार नहीं कर सका ।रावत सांई दास चुंडावत के साथ यह वीर भी सूरजपोल मोर्चे पर खेत रहा। सूरजपोल दरवाजे का निर्माण मूल रूप से महाराणा कुंभा ने करवाया था लेकिन कालांतर में टूट जाने से महाराणा फतेह सिंह जी ने इसका नए सिरे से निर्माण कराया। राज नोबल्स के सत्यपाल सिंह थाणा ने बताया कि कल राजटीला यानी राजतिलक चित्तौड़ दुर्ग पर हवन यज्ञ पुजा अर्चना के मुख्य जोड़े से कान सिंह सुवावा एवं उनके जोड़ायत श्याम कंवर सुवावा संयुक्त मंत्री जौहर क्षत्राणी संस्थान ने करवाया। मृगवन के पास सड़क के मोड़ पर एक ऊंचा चबूतरा बना है, जिसे राजटीला या आमखास का चबूतरा कहते हैं ।वैसे इस दुर्ग का सबसे ऊंचा स्थान है बापा रावल ने अपने पराक्रम से न केवल अरब से आने वाले शत्रुओं को भारत से खदेड़ा बल्कि ईरान तक उन्होंने अपने बाहुबली की धाक जमायी थी। इसी राज किले पर बिलू भील ने अपने अंगूठे के रक्त से बाप्पा रावल का राजतिलक किया था। भील सरदार बिलू के वंशज आज भी उदयपुर के निकट ऊंदरी नामक गांव में रहते हैं व परंपरा अनुसार नये महाराणा का राजतिलक करने का उन्हें विशेषाधिकार अधिकार प्राप्त है जान श्रुति के अनुसार चित्तौड़ के मौर्य राजाओं के राजतिलक भी इसी स्थान पर होते थे। शंकर सिंह कोटडी ने बताया कि आज प्रातः कालीन यज्ञ-हवन, दुर्गा सप्तशती, भागवत गीता, सुन्दर काण्ड पाठ के मुख्य यजमान राजनोबल के सत्यपाल सिंह थाणा व उनके जोड़ायत शशि जैतावत खोखरा बिराजे। तथा रामनारायण पुरी जी एवं नीलकंठ महादेव के महेंद्र जगन्नाथ भारती एवं पंडित अरविन्द भट्ट,चितौड़िया भेरूजी के पुजारी भेरूगिरी कथा महोत्सव पधार कर दैवीय शक्तियां को श्रद्धा सुमन अर्पित कर आशीर्वाद बक्षाया। दोपहर एक बजे दैवीय भागवत कथा महोत्सव का शुभारंभ गौभक्त लाल चरण जी महाराज ने श्री कृष्ण लीला में देवकी, वासुदेव जी, कृष्ण जन्मोत्सव, बाबा नन्द के घर आनन्द, गोपियों के प्रसंगों को सुनाया तो कथा में उपस्थित लोग भाव विभोर हो गए। श्री लाल चरण जी महाराज ने मां पन्ना धाय की स्वामी भक्ति में अपने पुत्र चन्दन का बलिदान, रावत सांई दास चुंडावत व डोडियां सांडा का प्रसंग सुनाया व श्रद्धा सुमन अर्पित किए। कथा महोत्सव में उदयपुर से राम चन्द्र साहु,शशि जैतावत एवं अदिति चुण्डावत ठिकाना थाणा, बलवंत सिंह सारंगदेवोत, कल्याण सिंह लसानी, जगदीश जी आधाल,शरद सिंह आरजिया भीलवाड़ा, प्रताप सिंह भोपजी का खेड़ा,चन्दा नीलमणि,सुरज सिंह शेखावत विजापुरा जयपुर, तेजपाल तेली,भंवर लाल सालवी, सत्यनारायण माहेश्वरी, शान्ति लाल राजौरा, शंकर लाल सुथार कोटड़ी उपस्थित थे।
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